श्री गुरु बाबा फकीरा दास जी मिरगपुर

पंजाबी भाषा की पुस्तक "जीवन साखी" महंत साधुराम द्वारा रचित में जन्मतिथि वर्ष का कुछ स्पष्ट वर्णन नहीं है परंतु तथ्यों के अध्ययन से अनुमान लगता है कि श्रीगुरुजी का प्राक्टय सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में फागुन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को जोधपुर राजस्थान के इंदरपुर रियासत के राजा मस्तु के यहां माता चंदौरी के गर्भ से हुआ। श्री गुरुजी का हिंदू वैदिक धर्म बचाने का सफल अभियान जागीर काल सन (1605-1627) ईशवी के हुआ। श्री गुरु जी के बचपन का नाम फकीरचंद था। गुरु जी की शिक्षा गुरु ब्रह्मानंद अलिमस्त ने कराई।
                          शिक्षा प्राप्त कर गुरुजी माता पिता से आज्ञा लेकर भाई मणिधर को राजगद्दी पर बैठा कर तपस्या करने के लिए कजली वन निकट हरिद्वार में आ गए। वहां तपस्या ब्रहादर्शन किए। वह स्थान सिद्ध कुटी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पर ग्रीष्म चेहरा शुक्ल पक्ष जेष्ठ मास के प्रति वर्ष गंगा किनारे काफी बड़ा मेला लगता है। गुरुजी ने वैसे तो केदारनाथ, बद्रीनाथ, ऋषिकेस, बिल्केश्वर महादेव, हरिद्वार आदि कई जगह जाकर धर्म प्रचार किया लेकिन मिरगपुर और घांंचो संगरूर पंजाब आदि कुछ स्थानों पर विशेष कृपा रही। 

             यह दिन घांचो पंजाब में अनेक संत महात्मा ज्ञानी, एवं भक्तों इकट्ठा हुए थे। श्री पंजाबी दास ने अपने गुरु श्री भाना दास जी से कहा कि आप कृपा करके हमें श्री गुरु बाबा फकीरा दास जी के अवतार एवं बाल लीला सुनाने की कृपा करें।श्री गुरु बाबा फकीरादास जी पृथ्वी लोक पर क्यों आए थे? उन्होंने कैसे एक मृतक बालक को जीवित कर अपना शिष्य बनाया।इस पर शिवाना दास जी ने अपने प्रिय शिष्य श्री पंजाबी दास से कहा है पंजाबी दास श्री गुरुदास जी भगवान विष्णु के अवतार थे वैसे तो प्रभु के अवतार के अनेक कारण हो सकते हैं लेकिन यहां पर मैं एक ही कारण का वर्णन कर रहा हूं। रवि कुल में एक समय राजा कवलभूप थे। पत्नी रानी सुरिंदा थी। अपना राजपाट अपने पुत्रों को सो कर वन में तपस्या करने के लिए चले गए। 50 वर्षों तक तपस्या करने के बाद भगवान विष्णु उनकी तपस्या से प्रसन्न हो गए और उन्हें दर्शन दिए भगवान विष्णु ने उनसे वर मांगने के लिए कहा तो राजा रानी ने भगवान विष्णु से यह कहा आप हमें अपने समाज के एक पुत्र रत्न दें इस पर भगवान विष्णु ने कहा इस संसार में मेरे अलावा मेरे जैसा और कोई है ही नहीं और मैंने आपको वर देने का वचन भी दे दिया है इस पर मैं आपको आशीर्वाद देता हूं कि कलयुग में आपके यहां मैं अवतार लूंगा। राजा कवलभूप रानी सुरिंदा अपने अगले जन्म में राजा मस्तु और रानी चंदौरी के रूप में पैदा हुए। उनके यहां भगवान विष्णु ने श्री गुरु बाबा फकीरादास के रूप में जन्म लिया।



Comments

Post a Comment